बेगुनाह की सहायता Motivational Story in Hindi for Success
अरब देश के गीलान नगर में रहने वाले शेख अब्दुल कादिर बहुत दरियादिल इनसान थे। वे अपना जीवन बहुत सादगी से बिताते थे। सत्साहित्य के पठन-पाठन में वे हमेशा लगे रहते थे।
उनके पड़ोस में एक यहूदी युवक रहता था। वह उच्छृखल किस्म का था। वह बराबर शोर मचाता। इससे शेख कादिर की इबादत में बाधा पड़ती। उन्होंने एक बार उस युवक से कहा, ‘मैं जब इबादत करता हूँ, कम-से-कम उस वक्त तो शोर न मचाओ।’
उस युवक का जवाब था, ‘मैं अपने घर में क्या करता हूँ, इससे किसी को क्या मतलब है? कुछ दिनों बाद शेख साहब ने महसूस किया कि उनके पड़ोस से शोरगुल की आवाजें नहीं सुनाई दे रहीं।
पता करने पर जानकारी मिली कि वह युवक हवालात में है। किसी अपराध में उसे पुलिस ले गई थी। उनके कानों तक यह बात पहुँच गई कि युवक बेगुनाह है।
उन्हें कुरान की शिक्षा याद आई कि बेगुनाह की सहायता करना फर्ज है। वह हाकिम के पास पहुँचे और बोले, ‘यहूदी युवक मेरा पड़ोसी है। यदि उसका जुर्म मामूली है, तो जुर्माने की रकम जमा करके मैं उसे छुड़वाना चाहता हूँ।’
हाकिम साहब शेख साहब से प्रभावित हुए और युवक की फाइल देखी। जाँच करने पर पता चला कि वह युवक वाकई बेगुनाह है । उसे रिहा कर दिया गया।
यह देखकर वह युवा शेख कादिर साहब के चरणों में झुक गया और माफी माँगने लगा। शेख साहब ने उससे कहा कि एक सच्चे मुसलमान का फर्ज है कि वह पड़ोसी के दुःख में काम आए।
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मन के जीते जीत Motivational Story in Hindi for Success
भारतीय संस्कृति में शुद्धता-पवित्रता को सर्वोपरि महत्त्व दिया गया है। कहा भी गया है, ‘अद्विशात्राणि शुध्यति मनः सत्येन शुध्यति विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बूद्धिज्ञनित शुध्यति ।’
यानी जल से स्नान करने से शरीर, सत्याचरण से मन, विद्या और तप से आत्मा तथा ज्ञान से बुद्धि की शुद्धि होती है। शास्त्रकार कहते हैं, ‘स्व मनो विशुद्धिम्तीर्थं अरथत् अपना विशुद्ध मन सर्वोपरि तीर्थ है।
विभिन्न संप्रदायों के नीति वचनों में कहा गया है कि मानव के उत्थान पतन में मन की अहम भूमिका होती है। अतः मन को किसी भी प्रकार के लोभ, लालच, राग-द्वेष, ईर्ष्या तथा भोग की असीमित इच्छाओं की कलुषता से बचाए रखने का प्रयास करते रहना चाहिए ।
सदैव सत्साहित्य का अध्ययन, सद्विचारों के चिंतन से मन को पवित्र बनाया जा सकता है। जिसका मन पवित्रता का अभ्यासी बन जाता है, उसकी वाणी और कर्म में एकरूपता होती है।
कहा भी गया है, ‘मनयेकं वचस्येकं कर्मणयेकं महात्मनाम’ यानी जो मन, वाणी और कर्म में एकरूप होते हैं, वही महात्मा हैं। यजुर्वेद में कहा गया है कि मन ऐसा सारथी है, जो इंद्रियरूपी अश्वों की नकेल पकड़कर प्राण रूपी रथ का संचालन करता है।
यदि मन पवित्र भावों से ओत-प्रोत हो, तो वह इंद्रियों को सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त करेगा और यदि वह दूषित विचारों के प्रभाव में है, तो इंद्रियों को कुमार्ग की ओर ले जाएगा। ‘मन के हारे हार है-मन के जीते जीत’। पवित्र मन वाला, निश्छल हृदय व्यक्ति ही राष्ट्र व समाज का कल्याण कर सकता है।
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दया धर्म का मूल Motivational Story in Hindi for Success
महाराज युधिष्ठिर समय-समय पर ऋषियों के आश्रम में पहुँचकर उनसे सत्संग किया करते थे। एक बार वे महर्षि मार्कण्डेयजी के दर्शन के लिए पहुंचे। उन्होंने महामुनि से प्रश्न किया, ‘सर्वोत्तम धर्म और सर्वोत्तम ज्ञान क्या है?’
महर्षि ने बताया, ‘आनृशंस्यं परो धर्मः क्षमा च परमं बलम्। आत्मज्ञानं परं ज्ञानं सत्यं व्रत परं व्रतम्।’ यानी क्रूरता का अभाव अर्थात् दया सबसे महान् धर्म है। क्षमा सबसे बड़ा बल है।
सत्य सबसे उत्तम व्रत है और परमात्मा के तत्त्व का ज्ञान ही सर्वोत्तम ज्ञान है। जो व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं में सुख न खोजकर परमात्मा को ही सुख का स्रोत मानकर सत्कर्मों व भक्ति में लगा रहता है,
वह न कभी दुःखी होता है और न ही निराश। अतः हृदय में दया व करुणा की भावना रखने वाला ही सबसे बड़ा धर्मात्मा और ज्ञानी है। मुनि मार्कण्डेय युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहते हैं, ‘राजन् तुम सभी प्राणियों को भगवान् का स्वरूप मानकर उन पर दया करो।
जितेंद्रिय और प्रजा पालन में तत्पर रहकर धर्म का आचरण करो। यदि प्रमादवश तुमसे किसी के प्रति कोई अनुचित व्यवहार हो गया, तो उसे अपने विनम्र व्यवहार से संतुष्ट कर दो।’
अहंकार को पतन का कारण बताते हुए मुनि कहते हैं, ‘मैं सबका स्वामी हूँ-ऐसा अहंकार कभी पास न आने देना। अपने को स्वामी नहीं सेवक समझने से ही राजा का कल्याण होता है। जो व्यक्ति राग-द्वेष से मुक्त होकर सबके कल्याण की कामना करता है, उसके कल्याण के लिए स्वयं प्रभु भी तत्पर रहते हैं।
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भक्त की कसौटी Motivational Story in Hindi for Success
एक बार अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से प्रश्न किया, ‘आपको किन-किन सद्गुणों वाला भक्त प्रिय है?’
श्रीकृष्ण ने बताया, ‘जो किसी प्राणी से द्वेष नहीं करता, सबसे सद्भाव व मैत्री भाव रखता है, सब पर करुणा करता है, क्षमाशील है, ममता और अहंकार से रहित है, सुख-दुःख में एक समान रहता है, वह भक्त मुझे प्रिय है।’
‘स्वर्ग के अधिकारी कौन होते हैं?’ इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, ‘जो दान, तपस्या, सत्य भाषण और इंद्रिय संयम द्वारा निरंतर धर्माचरण में लगे रहते हैं, ऐसे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो माता-पिता की सेवा करते हैं तथा भाइयों के प्रति स्नेह रखते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं।
हिंसा व अन्य दुष्प्रवृत्तियों को पतन का कारण बताते हुए श्रीकृष्ण ने कहा, ‘हे महाबाहु अर्जुन, प्राणियों की हिंसा करनेवाले, लोभ-मोह में फँसकर जीवन निरर्थक करनेवाले व्यक्ति का पतन हो जाता है,
लेकिन जो व्यक्ति न किसी से द्वेष करता है और न आकांक्षा करता है, उसे सदा संन्यासी, महात्मा ही समझना चाहिए, क्योंकि राग-द्वेष आदि द्वंद्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसार- बंधन से मुक्त हो जाता है।’
भगवान् श्रीकृष्ण आगे कहते हैं, जिसके चित्त में असंतोष व अभाव का बोध है, वही दरिद्र है। जिसकी चित्तवृत्ति विषयों में आसक्त नहीं है, वह समर्थ-स्वतंत्र है और सदा शांति की अनुभूति करता है।’
भक्तों को महत्त्व देते हुए श्रीकृष्ण ने बताया, ‘भक्त के पीछे-पीछे मैं निरंतर यह सोचकर घूमा करता हूँ कि उसके चरणों की धूल उड़कर मुझ पर पड़ेगी और मैं पवित्र हो जाऊँगा।
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चतुराई से मुक्ति Motivational Story in Hindi for Success
सच्चा मानव कौन है-इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए ऋषि व शास्त्रकार कहते हैं कि जिसका आचरण पवित्र है, जो निष्कपट है, जो दुःखी व्यक्ति की सहायता को तैयार रहता है, वही मानव कहलाने का अधिकारी है।
कपटी, आडंबरी व्यक्ति जब अपने परिजनों की दृष्टि में ही विश्वसनीय नहीं होता, तो भला वह भगवान् को कैसे प्रिय हो सकता है। इसलिए तुलसीदासजी ने लिखा है,
‘मन, कर्म, वचन छाडि चतुराई।’ यानी चतुराई से पूरी तरह मुक्त होकर ही भगवान् श्रीराम का प्रिय बना जा सकता है। आदिकवि वाल्मीकि ‘सत्यमेवेश्वरो लोके’ कहकर विशुद्ध सत्य, निष्कपट व्यक्ति को साक्षात् ईश्वर बताते हैं।
उन्होंने कहा है, ‘संतश्चारित्रभूषणाः’ यानी, संत वही है, जिनके आभूषण सदाचरण हुआ करते हैं। तुलसी भी कहते हैं, ‘संत हृदय जस निर्मल बारी और चंदन तरु हरि संत समीर।’ सच्चे संत हर क्षण भगवान् के भजन तथा दूसरों को सद्विचार की सुगंध से सुवासित करते रहते हैं।
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वाणी का संयम Motivational Story in Hindi for Success
दार्शनिकों ने इंद्रियों के संयम को जीवन की सफलता का प्रमुख साधना कहा है। देवर्षि नारद उपदेश देते हुए कहते हैं, ‘इंद्रियों का आवश्यक कर्मों को संपन्न करने में कम-से-कम उपयोग करना चाहिए।
मन पर नियंत्रण करके ही इंद्रिय-संयम संभव है। वाणी का जितना हो सके, कम उपयोग करने में ही कल्याण है।’ वाणी के संयम के अनेक प्रत्यक्ष लाभ देखने में आते हैं।
वाणी पर संयम करनेवाला किसी की निंदा के पाप , कटु वचन बोलकर शत्रु बनाने की आशंका, अभिमान जैसे दोषों से स्वतः बचा रहता है।
एक बार भगवान् बुद्ध मौन व्रत का पालन करते समय वृक्ष के नीचे एकाग्रचित्त बैठे हुए थे। उनसे द्वेष रखने वाला एक कुटिल व्यक्ति उधर गुजरा।
उसके मन में ईर्ष्या भाव पनपा-उसने वृक्ष के पास खड़े होकर बुद्ध के प्रति अपशब्दों का उच्चारण किया। बुद्ध मौन रहे। उन्हें शांत देखकर वह वापस लौट आया।
रास्ते में उसकी अंतरात्मा ने उसे धिक्कारा -एक शांत बैठे साधु को गाली देने से क्या मिला? वह दूसरे दिन पुनःबुद्ध के पास पहुँचा। हाथ जोड़कर बोला, ‘मैं कल अपने द्वारा किए गए व्यवहार के लिए क्षमा माँगता हूँ।’
बुद्ध ने कहा, ‘मैं कल जो था, आज मैं वैसा नहीं हूँ। तुम भी वैसे नहीं हो। क्योंकि जीवन प्रतिपल बीत रहा है। नदी के एक ही पानी में दोबारा नहीं उतरा जा सकता।
जब वापस उतरते हैं, वह पानी बहकर आगे चला जाता है। कल तुमने क्या कहा, मुझे नहीं मालूम और जब मैंने कुछ सुना ही नहीं, तो ये शब्द तुम्हारे पास वापस लौट गए। बुद्ध के शब्दों ने उसे सहज ही वाणी के संयम का महत्त्व बता दिया।
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सेठ और किसान Motivational Story in Hindi for Success
एक धनाढ्य को अपनी अकूत संपत्ति पर भारी घमंड हो गया। वह प्रायः अपने पुत्र से कहा करता कि सुख-सुविधा के जितने साधन उसके पास हैं, अन्य किसी के पास नहीं हैं। वह कहता कि गाँवों की हालत देखोगे, तो पता चलेगा कि लोग कितने अभाव में दिन काटते हैं।
एक दिन वह पुत्र को कार में बिठाकर एक गाँव ले गया । गाँव में वह एक परिचित किसान के घर पहुँचा। किसान ने बड़े प्रेम से उसका स्वागत किया।
मिट्टी की हंडिया में रखा गरम दूध उसे पिलाया, ताजा मक्खन, मट्ठे और सब्जी के साथ गरम-गरम रोटियाँ खिलाई। लौटते समय कार में गुड़ व गन्ने रख दिए।
लौटते समय सेठ ने पुत्र से पूछा, बेटा, देखा तुमने गाँव की हालत। सच बताना तुम्हें कैसा लगा?’ बेटे ने कहा, ‘पिताजी! यदि सच ही जानना चाहते हैं,
तो सुनिए! हमारे घर में केवल एक कुत्ता है, उस किसान के घर में चार गाएँ और बैल बँधे हैं। उसके बच्चे ताजी हवा में झूले झूलकर किलकारियाँ मार रहे थे।
हमारी कोठी के पिछवाड़े छोटा सा स्विमिंग पूल है, जबकि किसान के घर के पास नदी बह रही थी। हम फ्रिज में रखी कई-कई दिन पुरानी सब्जियाँ खाते हैं,
जबकि उसने ताजा सब्जियों से भोजन कराया। हम एकाकी जीवन बिताते हैं और जब हम उस किसान के घर पहुँचे, तो कई लोग हमारे स्वागत के लिए आए थे।
उनका अनूठा प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर मुझे लगा कि हमारे मुकाबले वे कहीं ज्यादा अच्छे इनसान हैं और हमसे ज्यादा अमीर भी। पुत्र के शब्द सुनकर सेठ का अहंकार काफूर हो चुका था। उस दिन के बाद उसने खुद को अमीर कहना छोड़ दिया।
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गाय और बाघ Motivational Story in Hindi for Success
‘पद्म पुराण’ में सत्य के महत्त्व को उजागर करने वाली एक कथा दी गई है। एक गाय चरागाह से लौटते समय अपनी संगिनियों से बिछुड़ गई। उसे याद आया कि देरी के कारण गोशाला में बँधा उसका बछड़ा भूख से व्याकुल हुआ रंभा रहा होगा।
चिंतामग्न वह गोशाला की ओर तेजी से लौट रही थी कि अचानक एक बाघ ने सामने आकर उसका रास्ता रोक लिया। बाघ ने कहा, ‘मैं बहुत भूखा हूँ। तुझे खाकर क्षुधा की पूर्ति करूँगा।
गाय अपने बछड़े के भूख से व्याकुल होने की सोचकर रोते हुए बोली, ‘व्याघ्रराज, मुझे अपने प्राणों का मोह नहीं है, किंतु बछड़े के भूख से छटपटाने की आशंका से मैं व्यथित हूँ। तुम विश्वास रखो, मैं उसे दूध पिलाने के बाद तुम्हारे पास लौट आऊँगी।’
गाय के करुणा भरे वचन सुनकर बाघ का दिल पसीज गया। उसने उसे अनुमति दे दी। गाय दौड़ी-दौड़ी गोशाला पहुँची। बछड़े को दूध पिलाकर उसने लाड़ किया और अन्य गायों से कहा, ‘मैं अपने बछड़े को तुम्हारे सुपुर्द कर रही हूँ। इसे बारी-बारी से दूध पिलाकर इसका पालन- पोषण करना।
अन्य गायों ने कहा, ‘क्यों सत्यव्रता बनकर मौत के मुँह में जा रही हो?’ गाय ने जवाब दिया, ‘वचन भंग करना अधर्म है। मैं प्राण बचाने के लिए पाप की भागी नहीं बन सकती।’
गाय को लौटा देखकर बाघ दंग रह गया। उसने कहा, ‘तुम जैसी सत्यवादी के प्राण लेकर मैं पाप का भागी नहीं बनना चाहता। जाओ, अपने बछड़े का पालन-पोषण करो।
यह कहते ही करुणा और दया के पुण्य के फलस्वरूप वह बाघ स्वर्गलोक प्रयाण कर गया।
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बोले हुए शब्द वापस नहीं आते (Motivational Story In Hindi For Success)
एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा. संत ने किसान से कहा ,
तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया. तब संत ने कहा ,
” अब जाओ और उन पंखों को इकट्ठा कर के वापस ले आओ किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचे.
तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते. (Motivational Story In Hindi For Success) इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है कि चुप रहा जाए.
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सफलता का रहस्य (Motivational Story In Hindi For Success)
एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?
सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया,
तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा.
फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना. सुकरात ने पूछा,”
जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?” लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना” सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है.
जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है.
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ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत (Motivational Story In Hindi For Success)
Philosophy के एक professor ने कुछ चीजों के साथ class में प्रवेश किया. जब class शुरू हुई तो उन्होंने एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमे पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे.
फिर उन्होंने students से पूछा कि क्या जी भर गया है ? और सभी ने कहा “हाँ तब प्रोफ़ेसर ने छोटे-छोटे कंकड़ों से भरा एक box लिया और उन्हें जार में भरने लगे. जार को थोडा हिलाने पर ये कंकड़ पत्थरों के बीच settle हो गए.
एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने हाँ में उत्तर दिया. तभी professor ने एक sand box निकाला और उसमे भरी रेत को जार में डालने लगे. रेत ने बची-खुची जगह भी भर दी.
और एक बार फिर उन्होंने पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने एक साथ उत्तर दिया, ” हाँ” फिर professor ने समझाना शुरू किया, ” मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि ये जार आपकी life को represent करता है.
बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की ज़रूरी चीजें हैं आपकी family,आपका partner, आपकी health, आपके बच्चे – ऐसी चीजें कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएँ और सिर्फ ये रहे तो भी आपकी ज़िन्दगी पूर्ण रहेगी.
ये कंकड़ कुछ अन्य चीजें हैं जो matter करती हैं जैसे कि आपकी job, आपका घर,इत्यादि. और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती है.
अगर आप जार को पहले रेत से भर देंगे तो कंकडों और पत्थरों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. यही आपकी life के साथ होता है.
अगर आप अपनी सारा समय और उर्जा छोटी छोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिए time नहीं होगा जो आपके लिए important हैं.
उन चीजों पर ध्यान दीजिये जो आपकी happiness के लिए ज़रूरी हैं.बच्चों के साथ खेलिए, अपने partner के साथ dance कीजिये. काम पर जाने के लिए,
घर साफ़ करने के लिए,party देने के लिए, हमेशा वक्त होगा. पर पहले पत्थरों पर ध्यान दीजिये-ऐसी चीजें जो सचमुच matter करती हैं. अपनी priorities set कीजिये. बाकी चीजें बस रेत हैं.”
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गुरु-दक्षिणा (Motivational Story In Hindi For Success)
एक बार एक शिष्य ने विनमतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा-गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है,कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं ।
इनमें कौन सही है? गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया-‘पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है;
जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं,मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं । यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था|
गुरु जी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे लो,तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ। ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे उन्होंने जो कहानी सुनाई,
वह इस प्रकार थी-एक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों ने अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरु दक्षिणा में,
उनसे क्या चाहिए गुरु जी पहले तो मंद-मंद मुस्कराये और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे-मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए,ला सकोगे?’
वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं।
वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले-जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं ,
उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया वे उसके पास पहुँच कर,
उससे विनमतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए,
उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था
अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके वहाँ पहुँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो,
पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी |
पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ नहीं दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी
अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा ‘पुत्र,ले आए गुरु दक्षिणा?’तीनों ने सर झुका लिया गुरु जी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा-
‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं।
गुरु जी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले- निराश क्यों होते हो प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करती बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं;
मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गये वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था,अचानक बड़े उत्साह से बोला-गुरु जी,
अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं आप का संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे,
किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं?चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है।
गुरु जी भी तुरंत ही बोले-‘हाँ, पुत्र,मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,
सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके दूसरे,यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम निर्विक्षेप,
स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें ।’अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था
अंततः,मैं यही कहना चाहती है कि यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है वस्तु,हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता है ऐसा विद्वानों का मत है।
ग्लास को नीचे रख दीजिये (Motivational Story In Hindi For Success)
एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक glass पकड़ते हए class शुरू की. उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी students को दिखाया और पूछा, ” आपके हिसाब से glass का वज़न कितना होगा?” ‘ 50gm….100gm… 125gm’… छात्रों ने उत्तर दिया.
जब तक मैं इसका वज़न ना कर ले मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता” .प्रोफ़ेसर ने कहा.” पर मेरा सवाल है: यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहँ तो क्या होगा?” ‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.
‘अच्छा, अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा?”, प्रोफ़ेसर ने पूछा. ‘आपका हाथ दर्द होने लगेगा’ , एक छात्र ने कहा.
” तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहँ तो का होगा?” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके muscle में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको hospital जाना पड़ सकता है” ….किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े…
“बहुत अच्छा, पर क्या इस दौरान glass का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा. उत्तर आया..”नहीं”
” तब भला हाथ में दर्द और मांसपेशियों में तनाव क्यों आया?” Students अचरज में पड़ गए.
फिर प्रोफेसर ने पूछा” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या कर?” ” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.
” बिल्कुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा. Life की problems भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.
और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको paralyze करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.
अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना इस तरह से,
आप stressed नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे.
आप हाथी नहीं इंसान हैं! (Motivational Story In Hindi For Success)
एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है,
उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं।!!
ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे.
उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नहीं कर रहे हैं? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है,
उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वोइन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है,
इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.” आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं।
। इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायी हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं.
याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधे हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए….. आप हाथी नहीं इंसान हैं.
तितली का संघर्ष (Motivational Story In Hindi For Success)
एक बार एक आदमी को अपने garden में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई पड़ा. अब हर रोज़ वो आदमी उसे देखने लगा ,
और एक दिन उसने notice किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है. उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा.
उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है, पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी, और फिर वो बिलकुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो.
इसलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा. उसने एक कैंची उठायी और कोकून की opening को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके, और यही हुआ,
तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे. वो आदमी तितली को ये सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी वक्त अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी,
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बीतानी पड़ी.
वो आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया की दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है
ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके. वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है.
यदि हम बिना किसी struggle के सब कुछ पाने लगे तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे. बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितना हमारी क्षमता है.
इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ान को possible बना पायेंगे.
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